रिश्ते 1
आगे.... रूठों को मनाओ और फिर कुछ दिन घर में शांति रहती है फिर कभी किसी बात पर और कभी किसी बात पर तनातनी। वो कहावत याद आजाती है कि शादी का लड्डू खाओ तो भी पश्चताओ ना खाओ तो भी पश्चताओ। अब खा लिया है तो विकल्प क्या है। जब शांति से बैठकर सोचते है तो क्या पता चलता है कहा है कमी मुझ में या मेरे घरवालों में। फिर ध्यान आता है कि जो अपने परिवार को छोड़कर मेरे साथ मेरे घर में आई है उसका मन इतना व्यथित अकारण तो नहीं हुआ होगा। शायद जो उसने सोचा वो या वेसा उसे इस घर में मिला नहीं। अब ये तो घर घर की कहानी है इसमें नया क्या है। पर जब मन व्यथित होता है किसी का दिल दुखता है तो आंखो में बरबस आंसु आ ही जाते है। फिर पता चलता है यार वाइफ सही बोल रही है उसको फील हो रहा है कुछ ना कुछ। कर रही है मन मारकर इस घर को बनाने का काम। मिलजुल कर रहने का । पर अब किसे समझाया जाए। किसी इंसान को आप कब तक तसल्ली दे सकते है। एक ना एक दिन तो वो सीमा भी ख़तम हों जाती है। मायके का प्यार बेशक हर ससुराल में नहीं मिलता किसी लड़की को, लेकिन ससुराल में मायके जैसे व्यवहार वाले माता पिता भी नहीं मिलते तब ज्यादा समस्या आती है। अब अगर...